ट्विंस टावर हुए धराशाई; पूरी तरह सफल रहा ऑपरेशन ट्विंस टॉवर,  2.30 पर किया ब्लास्ट

लोकमतसत्याग्रह/नोएडा के सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट ट्विन टावर की नौ साल की लड़ाई का अंत 12 सेकेंड में हो गया। सेक्टर-93ए स्थित ट्विन टावर के 32 मंजिला एपेक्स और 29 मंजिला सियान रविवार को जमींदोज हो गए।

ऑपरेशन ट्विन टॉवर की टेक्निकल टीम के अधिकारियों ने इस ऑपरेशन को पूरी तरह सफल बताया। एक अधिकारी ने कहा कि यह ऑपरेशन पूरी तरह सफल रहा। सब कुछ योजना के मुताबिक हुआ। ट्विन टावर को गिराने के लिए विस्फोट की जिस तकनीक का इस्तेमाल किया गया उसकी खासियत यही रही कि आसपास की किसी इमारत को नुकसान नहीं पहुंचा ।दोनों टावर अपनी जगह पर ही जमींदोंज हो गए और केवल धूल का गुब्बारा ही नजदीक इमारतों तक पहुंचा

 नोएडा प्राधिकरण की सीईओ रितु माहेश्वरी ने कहा कि मौके पर उठे हुए प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए फागिंग और अन्य उपकरण चालू कर दिए गए , तकनीकी टीम मौके पर आगे की जांच कर रही है। 2:30 बजे ट्रिगर दबाया गया और हर मंजिल पर धमाका होने के साथ ही ट्विन टावर मलबे में तब्दील हो गया। 100 मीटर से अधिक ऊंची इस इमारत को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ढहाया गया है। इसे अफ्रीका की कंपनी ने ढहाया इसके ध्वस्तीकरण पर करीब 7.5 करोड रुपए का खर्चा हुआ मौके पर पुलिस एवं एनडीआरएफ की टीम में भी तैनात की गई इस पूरी घटना की कवरेज के लिए नेशनल और इंटरनेशनल मीडिया भी मौके पर मौजूद रहा। टावर को सुपरटेक बिल्डर ने बनाया था।जिस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा था और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर इसे गिराया गया।

तकनीक वाटर फॉल इम्प्लोजन, विस्फोटक 3,700 किग्रा के
आपको बता दें कि रविवार को दोनों टावर वाटर फॉल इम्प्लोजन तकनीक से गिराए गए। इससे पहले एक टावर को थोड़ा सा टेढ़ा भी किया गया, जिससे उसका मलबा नजदीकी टावरों तक न पहुंचे। रविवार विस्फोट होने के चार सेकेंड के भीतर पानी के झरने सरीखा दृश्य उभर आया। तभी इसे वाटर फॉल इम्प्लोजन तकनीक कहा गया। इसमें पहले बेसमेंट को ध्वस्त किया गया। इसके बाद ऊपर से नीचे एक-एक कर तल ढहते चले गए। पूरी इमारत सीधे बैठ गई। ध्वस्तीकरण ऐसा रहा कि बगल की नौ मीटर दूर के टावर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।

एडिफिस कंपनी अब इस जगह पर पार्क बनाएगी। 100 मीटर से ज्यादा ऊंचाई वाले दोनों टावर गिरने में सिर्फ 12 सेकंड का वक्त लगा। इन्हें गिराने के लिए 3700 किलो बारूद का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद दोनों टावर करीब 80 हजार टन मलबे में तब्दील हो गए। टावरों से निकले मलबे से टाइल्स बनाई जाएंगी।

बताया जा रहा है कि मलबे से करीब 4 हजार टन लोहा और इस्पात निकलेगा। टावर ढहने के बाद करीब 40-45 फीट ऊंचे मलबे का ढेर लग गया है, 50 मीटर तक मलबा फैला पड़ा है। इस मलबे को हटाने में 90 दिन लगेंगे। यहां से मलबा हटना शुरू होने पर रोजाना 1200-1300 ट्रक फेरे लगाएंगे।

ब्लैक बॉक्स में रिकार्ड हुआ होगा ध्वस्त इमारतों के अंदर का नजारा
सीबीआरआई के चीफ साइंटिस्ट एवं जियो हेजार्ड रिस्क रिडक्शन ग्रुप लीडर डॉ. डीपी कानूनगो ने मीडिया से बातचीत में बताया कि एयरोप्लेन की तरह ही ट्विन टावर्स के ध्वस्तीकरण से पहले इनके अंदर 10 ब्लैक बॉक्स लगाए थे, जो डिमोलिशन की पूरी प्रक्रिया को दोनों इमारतों के भीतर से रिकार्ड करेंगे. इन ब्लैक बॉक्स में रिकार्ड जानकारी से पता चलेगा कि इमारतें किस तरह से गिरीं, कितनी स्पीड में धराशायी हुईं और किस तरह रोटेट होकर गिरीं. कुल मिलाकर ये ब्लैक बॉक्स इस तरह की डिमोलिशन के लिए आगे की रिसर्च में सहायता करेंगे. ट्विन टावर्स के मलबे को नोएडा अथॉरिटी साफ करने में जुट गई है. संभव है कि कुछ ब्लैक बॉक्स मलबे में दबकर क्षतिग्रस्त भी हो गए हों. इस पूरे काम में 10 वैज्ञानिकों की टीम लगी थी, जिनमें से 8 सीबीआरआई रुड़की और 2 सिम्फर धनबाद के थे.

15 करोड़ रुपए का निकला मलबा
प्लान के मुताबिक, यहां इकठ्ठा हुए 80 हजार टन मलबे का सेग्रीगेशन यानी अलग-अलग यहीं पर किया जाएगा। इस प्रक्रिया में 20 से 25 दिन का समय लग जाएगा। मलबे में कंक्रीट और स्टील शामिल हैं, जिनकी कीमत करीब 15 करोड़ रुपए आंकी गई है।

ब्लास्ट के बाद एडिफिस कंपनी ने दो घंटे तक जांच पड़ताल की। उन्होंने देखा कि कहीं कोई डेटोनेटर ब्लास्ट होने से बच तो नहीं गया। सब कुछ सही मिलने के बाद रात करीब 9 बजे आसपास रहने वालों को वापस लौटने का ग्रीन सिग्नल दिया गया। साथ ही सोसायटी की लाइट, पानी सप्लाई और गैस लाइन की सप्लाई बहाल की

तीन जगहों पर निस्तारित किया जाएगा मलबा
मलबे का तीन जगह निस्तारण किया जाएगा। 35-40 हजार टन मलबा ट्विन टावर के डबल बेसमेंट में भरा जाएगा। इसके बाद करीब 30 हजार टन मलबा सेक्टर-80 में प्राधिकरण के बने सी एंड डी वेस्ट प्लांट में ले जाया जाएगा। यहां वैज्ञानिक पद्धति पर इसका निस्तारण किया जाएगा। यहां टाइल्स आदि बनाई जाएगी। रोजाना करीब तीन हजार टन मलबे का निस्तारण होने की क्षमता है। इसके बाद बचे करीब 10 हजार टन मलबे को डूब क्षेत्र में एक गांव में ली गई जमीन में गढ्ढे में डाला जाएगा।

सोसायटी में रहने वालों को हो सकती परेशानी
मलबा हटने तक सुपरटेक एमरॉल्ड कोर्ट और एटीएस विलेज सोसायटी में रहने वाले लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। टावर ध्वस्तीकरण के दौरान करीब तीन किलोमीटर व 300 मीटर ऊंचाई तक धूल उड़ने की आंशका जताई गई थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। टावर की ऊंचाई से ऊपर जाने के बजाए नीचे की ओर ही धूल बैठती चली गई। दायरा भी कम रहा

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