लोकमतसत्याग्रह/नई दिल्ली।पुरातन काल से चली आ रही वर्णव्यवस्था पर बहस कोई नई नही है, सदियों से वर्णव्यवस्था लोग अपने-अपने विचार व्यक्त करते आ रहे है। वहीं ज्यादातर लोगो ने वर्ण व्यवस्था पर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर ही पेश किया गया है। वहीं कक्षा 6 की NCERT पुस्तक के अध्याय 5 में वर्ण व्यवस्था पर जो NCERT के द्वारा छात्रों को पढाया जा रहा वहीं आज समाज में आपसी मतभेद का सबसे बढ़ा कारण बनता जा रहा है, बता दें कि कक्षा 6 की NCERT पुस्तक के पृष्ठ संख्या 47-48 में लिखा है, “पुरोहितों ने लोगों को चार वर्णों में विभाजित किया , जिन्हें वर्ण कहते हैं । उनके अनुसार प्रत्येक वर्ण के अलग – अलग कार्य निर्धारित थे। पहला वर्ण ब्राह्मणों का था। उनका काम वेदों का अध्ययन – अध्यापन और यज्ञ करना था जिनके लिए उन्हें उपहार मिलता था । दूसरा स्थान शासकों का था , जिन्हें क्षत्रिय कहा जाता था। उनका काम युद्ध करना और लोगों की रक्षा करना था। तीसरे स्थान पर विशु या वैश्य थे। इनमें कृषक, पशुपालक और व्यापारी आते थे क्षत्रिय और वैश्य दोनों को ही यज्ञ करने का अधिकार प्राप्त था। वर्णों में अंतिम स्थान शूद्रों का था। इनका काम अन्य तीनों वर्गों की सेवा करना था। इन्हें कोई अनुष्ठान करने का अधिकार नहीं था। प्रायः औरतों को भी शूद्रों के समान माना गया । महिलाओं तथा शूद्रों को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था। राज्य राजा और एक प्राचीन गणराज्य पुरोहितों के अनुसार सभी वर्गों का निर्धारण जन्म के आधार पर होता था। उदाहरण के तौर पर , ब्राह्मण माता – पिता की संतान ब्राह्मण हो होती थी । NCERT के द्वारा वर्णित वर्ण व्यवस्था के इस अध्याय को आधार बनाते हुए लेखक के द्वारा एक RTI NCERT को दायर की गई थी जिस पर NCERT से 2 प्रमुख बिन्दुओं पर जानकारी मांगी गई थी।
>> प्रायः औरतों को भी शूद्रों के समान माना गया। महिलाओं तथा शूद्रों को वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था
>> राज्य राजा और एक प्राचीन गणराज्य पुरोहितों के अनुसार सभी वर्गों का निर्धारण जन्म के आधार पर होता था । उदाहरण के तौर पर , ब्राह्मण माता – पिता की संतान ब्राह्मण हो होती थी।
इन दोनों प्रमुख बिन्दुओं पर NCERT के पास कोई भी तथ्यात्मक जानकारी उपलब्ध नही है ,NCERT ने मनु स्मृति का उल्लेख तो किया पर उनके पास इसकी कोई सत्यापित कॉपी भी नही है जिसके आधार पर छात्रों को यह वर्षो से पढाया जा रहा है .भारत देश के इतिहास एवं पारम्परिक रीति रिवाजो से हम भी भली भांति परचित हैं , जहाँ महिलायों को इश्वर के रूप में सदियों से पूजा जाता आ रहा है . फिर हमारे देश में कैसे महिलायों को वेद पढने का अधिकार नही दिया गया ? वेदों के अध्यन को लेके यजुर्वेद के अध्याय 26 के दुसरे मंत्र में लिखा गया है। “हे मनुष्यो ! मैं ईश्वर (यथा) जैसे (ब्रह्मराजन्याभ्याम्) ब्राह्मण, क्षत्रिय (अर्याय) वैश्य (शूद्राय) शूद्र (च) और (स्वाय) अपने स्त्री, सेवक आदि (च) और (अरणाय) उत्तम लक्षणयुक्त प्राप्त हुए अन्त्यज के लिए (च) भी (जनेभ्यः) इन उक्त सब मनुष्यों के लिए (इह) इस संसार में (इमाम्) इस प्रगट की हुई (कल्याणीम्) सुख देनेवाली (वाचम्) चारों वेदरूप वाणी का (आवदानि) उपदेश करता हूँ, वैसे आप लोग भी अच्छे प्रकार उपदेश करें” इस मंत्र में साफ़ साफ़ चारो वर्णों को वेदों का पाठ करने के लिए कहा गया है. हर एक वर्ण को वेदों का पाठ करने के पूरी पूरी आजादी है , तो फिर NCERT बिना प्रमाणिकता के क्यों ऐसे लेख छात्रों को पढ़ा रही है जो समाज में आपसी मतभेद का कारण बन रहा है?NCERT के अनुशार राज्य राजा और एक प्राचीन गणराज्य पुरोहितों के अनुसार सभी वर्गों का निर्धारण जन्म के आधार पर होता था । उदाहरण के तौर पर , ब्राह्मण माता – पिता की संतान ब्राह्मण हो होती थी । NCERT ने इसका श्रोत मनुस्मृति को बताया है जिसका सत्यापित प्रमाण उनके पास नही है जबकि मनुस्मृति में ऋषि मनु ने लिखा है कि “ब्राह्मण शूद्र बन सकता है और शूद्र ब्राह्मण बन सकता है, किसी भी वर्ण का व्यक्ति ऐसे गुणों को प्राप्त करके किसी भी वर्ण में बदल सकता है।”भगवद्गीता में लिखा है कि “ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्ण उनके गुणों और कौशल से वितरित होते हैं और वे जो कर्म करते हैं, वह जन्म से प्राप्त नहीं होता है।”इस पुरे अध्याय में NCERTने वेदों में वर्णित कथनों को घुमा फिरा कर लिखा एवं आज तक छात्रों को यह सब पढाया जा रहा है, जब शिक्षा ही मत भेदों की तर्ज पर दी जाएगी तो लोगो मे मतभेद होना वाजिब है।
