लोकमतसत्याग्रह/उज्बेकिस्तान के समरकंद में शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन यानी SCO की बैठक शुरू हो गई है। मीटिंग में शामिल होने समिट सेंटर पहुंचे PM मोदी का उज्बेक राष्ट्रपति ने स्वागत किया। इस मीटिंग में SCO के सुधार और विस्तार, रीजनल सिक्योरिटी, सहयोग, कनेक्टिविटी को मजबूत करने और व्यापार को बढ़ावा देने पर चर्चा होगी। इसके बाद समरकंद बैठक से जुड़े डॉक्यूमेंट्स साइन किए जाएंगे।
PM मोदी 15 सितंबर की रात को समरकंद पहुंचे थे। मोदी आज रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन, ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शावकत मिर्जियोयेव के साथ द्विपक्षीय बैठक भी करेंगे। शाम को PM वापस नई दिल्ली रवाना हो जाएंगे।
जिनपिंग, शाहबाज शरीफ से मोदी की मुलाकात अहम
PM मोदी की पाकिस्तान के PM शाहबाज शरीफ और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ मुलाकात पर सस्पेंस बना हुआ है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक, अगर प्रधानमंत्री मोदी चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और शाहबाज शरीफ से मिलते हैं, तो ये मुलाकात भारतीय फॉरेन पॉलिसी के लिए बहुत अहम होगी।
भारत-चीन के बीच सीमा विवाद गहराने के बाद मोदी-जिनपिंग की ये पहली मुलाकात होगी। वहीं, पाकिस्तान में इमरान खान के पद से हटने के बाद मोदी पहली बार शाहबाज शरीफ से मिलेंगे।
पुतिन से रूस–यूक्रेन जंग और कच्चे तेल की बिना बाधा सप्लाई पर बात करेंगे मोदी
पुतिन से PM मोदी की मुलाकात में दोनों नेता रूस-यूक्रेन जंग और फूड सिक्योरिटी जैसे अहम मसलों पर बातचीत करेंगे। रूस की ओर से जारी बयान के मुताबिक, स्ट्रैटजिक स्टेबिलिटी, एशिया-पैसिफिक रीजन की स्थिति से जुड़े मुद्दों पर चर्चा होगी। विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने बताया कि PM मोदी पुतिन से सस्ते कच्चे तेल की बिना किसी बाधा के सप्लाई बातचीत कर सकते हैं।
इस बीच, गुरुवार को दिल्ली में रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव ने कहा कि भारत को कच्चे तेल की आपूर्ति जारी रहेगी। यह इस साल नए रिकॉर्ड को छुएगी। भारत को सस्ता तेल चाहिए, वहीं रूस को नए बाजार की दरकार है।
LAC पर तनाव घटा, फिर भी जिनपिंग से मुलाकात की उम्मीद कम– आखिर वजह क्या है
भारत और चीन के बीच लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल यानी LAC पर तनाव कम होने के बावजूद उजबेकिस्तान में मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात पर सस्पेंस है। मोदी और जिनपिंग की SCO समिट से इतर मुलाकात पर चीन की फॉरेन मिनिस्ट्री के साथ वहां का मीडिया भी चुप्पी साधे है
SCO का एक प्रमुख उद्देश्य सेंट्रल एशिया में अमेरिका के बढ़ते प्रभाव का जवाब देना है। कई एक्सपर्ट SCO को अमेरिकी दबदबे वाले NATO के काउंटर के रूप में देखते हैं। 1949 में अमेरिकी अगुआई में बने NATO के अब 30 सदस्य हैं। SCO में शामिल चार परमाणु शक्ति संपन्न देश भारत, रूस, चीन और पाकिस्तान NATO के सदस्य देश नहीं हैं। इनमें से तीन देश- भारत, रूस और चीन इस समय अर्थव्यवस्था और सैन्य ताकत के लिहाज से दुनिया की प्रमुख महाशक्तियों में शामिल हैं। यही वजह है कि SCO को पश्चिमी ताकतवर देशों के सैन्य संगठन NATO के बढ़ते दबदबे का जवाब माना जाता है।
