ग्वालियर के बेटे ने NASA में दिखाया कमाल, अब 2 घंटे में धरती पर लौट सकते हैं अंतरिक्ष यात्री

लोकमतसत्याग्रह/ग्वालियर के एक इंजीनियर बेटे प्रतीक त्रिपाठी ने नासा के चंद्रमा के लिए आयोजित मिशन आर्टेमिस-3 में योगदान देकर शहर के साथ ही देश का नाम रोशन किया है. वह नासा के 10 सप्ताह के सलाना समर इंटर्न प्रोग्राम के लिए 300 स्कॉलर में से न केवल चयनित हुए, बल्कि अपने शोध से सभी को चकित कर दिया. उनके शोध से निष्कर्ष निकला कि लैंडिंग साइट से PSR (परमानेंट शैडो रीजन) पर अंतरिक्ष यात्री दो घंटे में लौट सकते हैं.

बता दें कि ग्वालियर के बहोड़ापुर में जाधव कॉलोनी में रहने वाले रविंद्र त्रिपाठी के बेटे प्रतीक त्रिपाठी ने  ना सिर्फ नासा के शोधकर्ताओं के साथ काम किया बल्कि अपने शोध कार्यों से नासा के वैज्ञानिकों का ध्यान भी आकर्षित किया. साथ ही लैंडिंग साइट से जुड़े विभिन्न पहलुओं जैसे ढलान, तापमान, रोशनी और पैदल चलने में लगने वाले समय के मानकों का आकलन कर उस पर भी सभी का ध्यान केंद्रित किया.

प्रतीक की इस लगन और मेहनत को देखते हुए नासा के वैज्ञानिकों ने एक तरफ जहां प्रतीक के इन मानकों पर विशेष ध्यान दिया. वहीं इसे आर्टेमिस मिशन 3 का विशेष उद्देश्य भी बनाया. प्रतीक के पिता ने बताया की प्रतीक ने अपना यह कार्य लूनर एंड प्लेनेटरी इंस्टिट्यूट एलपी आई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ डेविड क्रीम के मार्गदर्शन में पूरा किया.

इंजीनियरिंग कर नासा के इंटर्न तक का सफर
प्रदीप वर्तमान में जियोमैटिक्स इंजीनियरिंग ग्रुप के रिसर्च स्कॉलर हैं, और प्रोफेसर राहुल देव के अधीन कार्य कर रहे हैं. प्रतीक त्रिपाठी ने 2016 में ग्वालियर के ट्रिपल आईटीएम ग्रुप आफ इंस्टीट्यूट इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग से ब्रांच में टॉपर के रूप में बीई की डिग्री प्राप्त की. इसरो के संस्थान आईआईआरएस से 2018 में एमटेक की डिग्री प्राप्त करने के बाद प्रतीक का चयन आईआईटी रुड़की में हो गया. यही रहते हुए प्रतीक ने एलपी आई और नासा के जॉनसन स्पेस सेंटर द्वारा आयोजित इंटर्नशिप प्रोग्राम में हिस्सा लिया. जहां 300 से ज्यादा प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए प्रतीक ने नासा की राह पकड़ ली.

बचपन में चंद्रमा और तारे देखता था
प्रतिक की मां उषा त्रिपाठी ने बताया उसे बचपन से ही तारे सितारे के बारे में जिज्ञासा रहती थी. वह बचपन में ही घर में एक रखी दूरबीन से तारों को देखता रहता था साथ ही मुझे भी छत पर ले जाकर अपनी किताब में पढ़कर सारे तारे दिखाने की कोशिश करता था तब मैं कहती थी मुझे खाना बनाना है नहीं समझ आता था कि बचपन में तारे सितारे की बातें करने वाला मेरा बेटा आज उन्हीं पर बड़ी-बड़ी शोध करेगा.

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