लोकमतसत्याग्रह/ भरत सिंह परमार
निवेश की भेड़ चाल में न पड़ें
“मूढ़ मुड़ाये हरि मिले,हर कोई लेओ मुड़ाये बार बार के मूढ़ से भेड़ ना बैकुंठ जाए”
कबीर बिना मर्म को समझे मात्र दूसरे की देखा देखी किये कर्मकांड के बारे में कहते हैं की यदि बाल निकालने से ही हरि प्राप्त होने होते तो भेड़ों को तो मोक्ष कब का प्राप्त हो जाए और वो बैकुंठ चली जाएं परंतु ऐसा नहीं होता। भेड़ चाल चलने से हरि नहीं मिलते।
क्योंकि भेड़ के बाल हर वर्ष निकालने से भी उसको मोक्ष प्राप्त नहीं होता।
इसी प्रकार निवेश करते समय भेड़ चाल में नहीं चलना चाहिए बल्कि अपने निवेश के उद्देश्य को ध्यान में रखकर निवेश करना चाहिए।
भीड़ की मानसिकता
आमतौर पर किसी निवेश के निर्णय लेने के दौरान लोग भीड़ के पीछे पीछे हो जाते हैं। कबीर बताते हैं कि यदि किसी के सर के बाल हजामत करने से मोक्ष प्राप्त हो सकता तो फिर भेड़ इनमें से सबसे आगे होती लेकिन ऐसा नहीं होता। इसी तरह निवेश पर निर्णय लेने से पहले लोगों को अपनी जरूरत की चीजें, अपनी उपभोग की चीजें, एवं अपने जोखिम लेने की क्षमता, लक्ष्य आदि पर विचार करना चाहिए। भीड़ के पीछे भागना एक अच्छा विचार नहीं है।
दुनिया भर में निवेशक लालच और डर की भावनाओं से प्रेरित होते हैं।
निवेशकों को चढ़ते बाजार में एक सबसे बड़ी चिंता होती है-“छूट जाने का डर”और लोगों के मन में यह मानसिकता बन जाती है कि ऐसा बाजार अब फिर कभी शायद ही आए इसलिए तुरंत निवेश कर देना चाहिए, जैसे कल अवसर नहीं मिलेगा।
ऐसा अनुभव हुआ जब हर्षद मेहता की तेजी के दौरान 1962 में बाजार में बहुत तेज रफ्तार पकड़ी थी। ऐसी ही घटना 1999 से 2000 में डॉट कॉम बुलबुले के रूप में हुई और 2007 में यह तो बुलंदी पर पहुंच गया था, जब कई सारी बड़ी कंपनियां भवन निर्माण एवं इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधित क्षेत्र में कूद पड़ी। उस समय शेयर बाजार अपने चरम पर था। जब कई रिटेल निवेशकों ने बाजार का ऐसा रूप देखा तो वह भी मैदान-ए-जंग में कूद पड़े और यहां यह कहना अति आवश्यक है कि वे भीड़ के पीछे भागे और ऐसा करने में अंततः उनको अपने हाथों को जलाना पड़ा अर्थात नुकसान उठाना पड़ा।
जनवरी 2008 में जब सेंसेक्स ने बुलंदियों को छुआ तो बाजार में धन वर्षा शुरू हो गई थी भूतकाल में भेड़ चाल की ऐसी घटनाएं ना केवल भारत में अपितु दुनिया भर में देखी गई। जब लोग आईपीओ खरीदने के लिए कतारबद्ध होते थे एवं अंततोगत्वा घाटे में बाहर निकले। 1992 से 1993 के समय में जब निवेशकों ने स्टॉक का पीछा किया अथवा 1994 में आई.पी.ओ. बूम के दौरान, 1999 से 2000 में टैंक बूम और 2007 में इंफ्रास्ट्रक्चर तथा रियल स्टेट की वजह से बाजार उछाल पर था। ऐसे ही समय में निवेशक लालच का शिकार बनते हैं और बिना कोई भी सोच लिए बाजार में धन डाल देते हैं।
यह बाजार इक्विटी बाजार तक ही सीमित नहीं है। भारत में 90 के दशक के दौरान कई लोग फिक्स्ड इनकम प्रोडक्ट जैसे कॉर्पोरेट फिक्स्ड डिपॉजिट्स, प्लांटेशन, और टाइम शेयरिंग कंपनियों, के शेयरों को लेकर उनके बड़े-बड़े वादों के शिकार हो गए।
अभी कुछ दिन पहले तक नयी नयी क्रिप्टो कर्रेंसी में लोगों ने पैसे डूबाये,
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में पैसा लगाने के लिए कई लोग रकम जुटा रहे हैं । रियल एस्टेट में इसकी जांच किए बिना की प्लॉट को भविष्य में क्या वे बेच भी पाएंगे लोग भावनाओं में अपने मित्रों, रिश्तेदारों से प्रभवित होकर निवेश कर रहे हैं.। आज भी ऐसी कई चिटफंड कंपनियां, मल्टीलेवल कंपनिया हैं जो लोगों को नाना प्रकार के लालच देकर पैसे कमा रही हैं और लोग भी प्रभावित होकर पैसा लगाने को आतुर दिखाई देते है।
अपने आसपास के वातावरण को जब कोई निवेशक अपने मन के मुताबिक पाता है तो वह खुश हो जाता है। व्यावहारिक अर्थशास्त्र में इस प्रकार के व्यवहार को “सामाजिक प्रमाण”कहा जाता है। जब वे देखते हैं कि उनके आसपास के अन्य लोग उनकी ही गतिविधि को अपना रहे हैं तो उन्हें विश्वास हो जाता है कि उनका यह कदम सही है।
जैसा कि रोल्फ डोबेलि ने अपनी पुस्तक ‘द आर्ट ऑफ थिंकिंग क्लीयरली’बेहतर सोच, बेहतर निर्णय के बारे में कहा है की अगर 50 लाख मूर्ख भी बेवकूफी की बात करते हैं तो भी वह बात मूर्खतापूर्ण ही होगी।
इसलिए झुंड के पीछे भागने के बजाय और सीधे बाजार में कूदने, अथवा किसी प्रॉपर्टी में निवेश करने से पहले हर एक को अपना होमवर्क करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए स्वयं के जोखिम लेने की क्षमता का अध्ययन करके जोखिम को जानना महत्वपूर्ण है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि अपनी संपत्ति का उचित जगह आवंटन करना चाहिए और बाजार के शोर से परेशान नहीं होना चाहिए। हालांकि है काम इतना सरल नहीं जितना बोलने में लगता है।
इसके लिए किसी वित्तीय विशेषज्ञ से सलाह लेने बहुत जरुरी है.
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि निवेशकों को अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना चाहिए और निवेश के समय तर्कसंगत दृष्टिकोण का पालन करना चाहिए।
