लोकमतसत्याग्रह/नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव से पहले पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम होने की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने भी तेल कंपनियों से पेट्रोल-डीजल के दाम घटाने की अपील की है। उन्होंने रविवार को कहा- अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें नियंत्रण में हैं। तेल कंपनियां भी अब घाटे से उबर चुकी हैं, ऐसे में मेरा अनुरोध है कि कंपनियां पेट्रोल-डीजल के दाम कम करें।
पुरी ने कुछ राज्यों के वैट नहीं घटाने पर भी निशाना साधा। पुरी ने कहा- अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें बढ़ने के बावजूद केंद्र सरकार ने नवंबर 2021 और मई 2022 में एक्साइज ड्यूटी कम की थी, लेकिन कुछ राज्य सरकारों ने वैट नहीं घटाया। इस वजह से उन राज्यों में अब भी तेल की कीमतें ज्यादा हैं। हरदीप पुरी बनारस में गंगा घाट पर CNG बोट रैली में बोल रहे थे।
इस साल 9 राज्यों में होने हैं चुनाव
इस साल 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड के विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया है। त्रिपुरा में 16 फरवरी को मतदान होगा। मेघालय और नगालैंड में 27 फरवरी को वोटिंग होगी। सभी राज्यों के नतीजों का ऐलान 2 मार्च को होगा। जबकि कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना में भी इस साल के अंत तक चुनाव होने हैं।
कैसे तय होती हैं पेट्रोल–डीजल की कीमतें?
जून 2010 तक सरकार पेट्रोल की कीमत निर्धारित करती थी और हर 15 दिन में इसे बदला जाता था। 26 जून 2010 के बाद सरकार ने पेट्रोल की कीमतों का निर्धारण ऑयल कंपनियों के ऊपर छोड़ दिया। इसी तरह अक्टूबर 2014 तक डीजल की कीमत भी सरकार निर्धारित करती थी, लेकिन 19 अक्टूबर 2014 से सरकार ने ये काम भी ऑयल कंपनियों को सौंप दिया।
अभी ऑयल कंपनियां अंतरराष्ट्रीय मार्केट में कच्चे तेल की कीमत, एक्सचेंज रेट, टैक्स, पेट्रोल-डीजल के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च और बाकी कई चीजों को ध्यान में रखते हुए रोजाना पेट्रोल-डीजल की कीमत निर्धारित करती हैं।
तेल की कीमत में बड़ा हिस्सा टैक्स का
आज जब आप 100 रुपए का पेट्रोल लेते हैं तो 52 रुपए टैक्स के रूप में सरकार की जेब में जाता है। इससे आम लोगों की जेब खाली हुई, वहीं, सरकार का खजाना तेजी से भरता गया। ऐसे में अगर सरकार चाहे तो टैक्स में कटौती करके आम आदमी को राहत दे सकती है। टैक्स वसूलने में महाराष्ट्र सबसे आगे है।
मुख्य रूप से 4 बातों पर निर्भर करते हैं पेट्रोल–डीजल के दाम
- कच्चे तेल की कीमत
- रुपए के मुकाबले अमेरिकी डॉलर की कीमत
- केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वसूले जाने वाला टैक्स
- देश में फ्यूल की मांग
भारत अपनी जरूरत का 85% कच्चा तेल करता है आयात
हम अपनी जरूरत का 85% से ज्यादा कच्चा तेल बाहर से खरीदते हैं। इसकी कीमत हमें डॉलर में चुकानी होती है। ऐसे में कच्चे तेल की कीमत बढ़ने और डॉलर के मजबूत होने से पेट्रोल-डीजल महंगे होने लगते हैं। कच्चा तेल बैरल में आता है। एक बैरल यानी 159 लीटर कच्चा तेल होता है।
डीजल की सबसे ज्यादा खपत ट्रांसपोर्ट और एग्रीकल्चर सेक्टर में
भारत में डीजल की सबसे ज्यादा खपत ट्रांसपोर्ट और एग्रीकल्चर सेक्टर में होती है। दाम बढ़ने पर यही दोनों सेक्टर सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। डीजल के दाम बढ़ने से खेती से लेकर उसे मंडी तक लाना महंगा हो जाता है। इससे आम आदमी और किसान दोनों का बजट बिगड़ सकता है।
