यूजर्स तय करेंगे…फोन में गूगल एप रखने हैं या नहीं:CCI की सख्ती के बाद झुका Google, एंड्रॉयड फोन चलाने वाले 97% लोगों को फायदा

लोकमतसत्याग्रह/आप जब भी कोई नया एंड्रायड फोन खरीदते हैं तो उसमें पहले से ही गूगल के कुछ एप इंस्टॉल रहते हैं। आप चाहें तब भी इन्हें हटा नहीं सकते। क्योंकि गूगल मोबाइल बनाने वाली कंपनियों को इसी शर्त पर एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम दे रहा था कि उन्हें उसके एप प्री-इंस्टॉल करने होंगे, लेकिन बुधवार को गूगल ने ऐलान किया कि अब मोबाइल में गुगल रखना कंपलसरी नहीं होगा। यह मोबाइल कंपनियों की इच्छा पर निर्भर है कि वे गूगल के एप प्री-इंस्टॉल करें या न करें। गूगल पर इन्हीं एप के जरिए विज्ञापन बाजार में भी मोनोपोली जमाने के आरोप हैं।

गूगल को यह कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि पिछले हफ्ते ही सुप्रीम कोर्ट ने कंपटीशन कमीशन ऑफ इंडिया (CCI) द्वारा उस पर लगाए गए 1337.76 करोड़ रु. के जुर्माने पर रोक से इनकार कर दिया था। CCI की जुर्माना लगाने की वजह यह थी कि गूगल एंड्रॉयड के बदले में मार्केट में कंपटीशन के नियमों का उल्लंघन कर रहा था।

गूगल ने कहा कि हम भारत के नियमों का पालन करने के लिए कमिटेड हैं। अब मोबाइल निर्माता कंपनियों को फोन में गूगल एप प्री-इंस्टॉल करने के लिए लाइसेंस देने की छूट होगी। CCI ने प्ले स्टोर पॉलिसी को लेकर भी गूगल पर 936 करोड़ का जुर्माना लगाया था।

अपनी मर्जी से डिफाल्ट सर्च इंजन फोन में रखिए

इस फैसले से मोबाइल यूजर्स पर क्या फर्क पड़ने वाला है?
देश में 97% मोबाइल यूजर्स एंड्राॅयड फोन चलाते हैं। गूगल के फैसले के बाद अब इन्हें अपनी मर्जी का डिफाल्ट सर्च इंजन चुनने का विकल्प मिलेगा। नया एंड्रॉयड मोबाइल या टैबलेट खरीदने पर एक च्वॉइस स्क्रीन दिखेगी, जिसके जरिए पसंदीदा सर्च इंजन चुन सकेंगे। यह नई व्यवस्था अगले महीने से ही शुरू होने की उम्मीद है।

पुरानी व्यवस्था में क्या दिक्कत थी, इसे बदलना क्यों पड़ा?
अभी एंड्रॉयड फोन लेने पर गूगल मैप, गूगल सर्च सर्विस, क्रोम ब्राउजर और यूट्यूब जैसे गूगल के कई एप प्री-इंस्टॉल होते हैं। आप चाहकर भी नहीं हटा सकते। यानी इन्हें इस्तेमाल करना आपकी बाध्यता है, जो प्रतिस्पर्धा नियमों के खिलाफ है। नई व्यवस्था में अब आप ऐसे एप अनइंस्टॉल भी कर पाएंगे।

प्रीइंस्टॉल एप और प्ले स्टोर के जरिए गूगल कैसे विज्ञापन बाजार में अपनी मनमानी कर रहा है?
गूगल इन एप से एंड्रॉयड फोन इस्तेमाल करने वालों का डेटा जुटा लेता है। गूगल का डेटा एनालिसिस करने वाला सिस्टम जानता है कि आपको किस तरह के विज्ञापन दिखाए जाने पर आपके सामान खरीदने की संभावना बढ़ जाएगी। जब आप कुछ सर्च नहीं भी कर रहे होते हैं, तब भी जीमेल, क्रोम या अन्य एप के जरिए आपका डेटा उसके पास जमा रहता है। अमेरिकी सीनेट में गूगल पर यह आरोप भी लग चुका है कि वह प्रतिस्पर्धी एप्स को अपने प्ले स्टोर से बाहर कर देता है।

अमेरिका में भी गूगल पर केस, 140 पेज की शिकायत दी गई
उधर, अमेरिका में न्याय विभाग और 8 राज्यों ने ऑनलाइन विज्ञापन बाजार में मोनोपोली कायम करने की पॉलिसी को लेकर गूगल के खिलाफ केस किया है। 140 पेज की शिकायत में कहा गया है कि डिजिटल विज्ञापन में गूगल ने सर्च इंजन में अपने प्रभुत्व से प्रतिस्पर्धा को खत्म कर दिया है।

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