सर सूखे पंछी उड़े, और सरन समाही। दीन मीन बिन पंख के, कहु रहीम कहां जाई।।
सरोवर के सूख जाने पर, पक्षी किसी और तालाब पर अपनी प्यास बुझाने चले जाते हैं लेकिन उसी तालाब की मछली पंख न होने की वजह से तड़पती रह जाती है।
उसी प्रकार एक रिटेल निवेशक जो बड़े-बड़े निवेशकों की देखा देखी शेयर बाजार में पैसा डालता है। आमतौर पर तेजी में जब संस्थागत निवेशक अचानक बाजार से बाहर निकल जाते हैं और बाजार गिर जाता है तब रिटेल निवेशक मछली की भांति अपने आप को असहाय महसूस करता है और पछताता है।
एक रिटेल निवेशक की नियति
ज्यादातर निवेशकों के लिए एक कठिन स्थिति होती है जब उन्हें लगता है कि उन्होंने बाजार के शीर्ष पर निवेश किया है और उनके निवेश का मूल्य धूल चाट रहा है ऐसे में वो खुद को असहाय पाते हैं और उम्मीद करते हैं कि कब यह उछाल वापस आएगा। ऐसी स्थिति कब होती है जब संस्थागत निवेशक, एफ. आई. आई. और कंपनियों के प्रमोटर कहीं और बेहतर अवसर तलाशते हैं और रिटेल निवेशक पीछे रह जाते हैं। यह उस मछली की स्थिति की तरह है जो एक सूखे तालाब में तैरती है जबकि उस तालाब में पानी पीने वाले अन्य पक्षी उस तालाब का पानी पीकर अन्य जगह चले जाते हैं और मछली को उसके भाग्य पर छोड़ देते हैं
लोग पैसे के प्रति अपने व्यवहार के कारण पैसे बनाते अथवा गंवाते हैं। भावनाओं को नियंत्रित करना महत्वपूर्ण है और पैसों को सम्मान देना उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। यद्यपि यह कहना आसान लगता है की जरूरी क्या है। उत्साह के समय लोग उधार लेकर, सब कुछ दांव पर लगा कर निवेश करने को तैयार होते हैं। बाजार में उधार लेने के लिए आकर्षक दरों की पेशकश करके निवेशकों को बाजार में आकर्षित करने के लिए उधार देने वाले तमाम लोग होते हैं। सड़क पर हर कोई यही ही समझता है कि बाजार केवल ऊपर ही जा सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में सबप्राइम इस तरह के व्यवहार का एक बढ़िया उदाहरण है। सरकार द्वारा अर्थव्यवस्था में काफी तरलता थी। वित्तीय संस्थाएं अत्यधिक कम दरों पर ऋण मुहैया करा रही थी। बिना किसी पूछताछ या व्यवस्थित औपचारिकताओं के ऋण दिए जा रहे थे क्योंकि पूरे बाजार का मानना था कि रियल स्टेट बाजार कभी भी नीचे नहीं आएगा बिना किसी आय वाले लोगों, बेरोजगारों और बिना किसी संपत्ति के बदले में भी ऋण की पेशकश की गई और इन्हें लोकप्रिय रूप से निंजा ऋण कहा गया। जिसका पूरा आधार यह था कि अचल संपत्ति कभी भी नीचे नहीं जाएगी। महत्वकांक्षी वित्तीय संस्थाओं ने इन ऋणों का प्रतिभूति करण करना शुरू कर दिया और बिना किसी समय लगाए यह एक बड़ा व्यापार बन गया। लेकिन जब गुब्बारा फूटा तो कई संस्थाएं व्यवसाय से बाहर हो गई और कई संस्थाओं को सरकार ने हस्तक्षेप करके बचाया।
लगभग उसी समय भारत में घर पर बैठे लोगों का यही मानना था कि इंफ्रास्ट्रक्चर ही एकमात्र ऐसा स्थान है जहां त्वरित पैसा बनाया जा सकता है सेंसेक्स ने 21000 के उच्चतम स्तर को छुआ और ज्यादातर विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया कि 2008 के अंत तक यह 25000 तक पहुंच जाएगा। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। पलक झपकते सेंसेक्स 6500 के स्तर तक नीचे आ गया। यह रिटेल निवेशकों की विशिष्ट नियति है जो आमतौर पर पार्टी के अंत में आते हैं और खुद को घाटे में पाते हैं।
इन सभी घटनाओं में निवेशकों के आत्मविश्वास को पूरी तरह हिला कर रख दिया और अंत में निवेशकों ने अपने को असहाय पाया। यहां यह समझना जरूरी है कि कोई भी परिसंपत्ति वर्ग जो अत्यधिक मात्रा में खरीदी जाती है तो वह कभी ना कभी गिरने के लिए बाध्य है। “शेयर बाजार जैसा चलता आया है ऐसा ही चलता रहेगा-यह एक ऐसी जगह है जहां एक बड़ी तेजी के बाद मंदी का दौर आना निश्चित है। दूसरे शब्दों में, यह एक ऐसी जगह है जहां आज के मुफ्त भोजन के बदले अगले दिन दुगना भुगतान करना पड़ता है”।
