लोकमतसत्याग्रह/काशी को वाराणसी भी कहा जाता है। कहा जाता है कि यह पूरी भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी है तथा प्रलय में भी इसका नाश नहीं होता। यह स्थान वरणा और असी नामक नदियों के बीच बसा है। इस कारण इसे वाराणसी कहते हैं। सातों पुरियों में काशी मुख्य मानी गई है। ऐसी मान्यता है कि जो काशी में देह त्यागता है, वह स्वर्ग लोक में पहुंचता है। इस मान्यता के आधार पर हजारों लोग देह त्यागने के लिए काशी आते हैं।कुल द्वादश ज्योतिर्लिंग हैं। इनमें से भगवान शंकर का विश्वनाथ नामक ज्योतिर्लिंग यहीं पर है। 51 शक्तिपीठों में 1 शक्तिपीठ काशी में ही है। यहां सती का दाहिना कण कुंडल गिरा था। काशी को मंदिरों का नगर कहा जाता है यहां गली गली में मंदिर बने हुए हैं।
काशी माहात्म्य
काशी संसार की सबसे प्राचीन नगरी बताई गई है। इसका वेदों में भी कई जगह उल्लेख है और वेद विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ हैं। स्कंद पुराण में उल्लेख है की जिसके हृदय में काशी सदा विराजमान है, उन्हें संसार -सर्प के विष से क्या भय? नारद पुराण के अनुसार काशी एक ऐसी पुरी है, जो साक्षात मोक्ष प्रदान करती है।
धार्मिक पृष्ठभूमि
सृष्टि रचना से पूर्व ब्रह्मा (परमात्मा) अकेला ही रहता है। सृष्टि रचना के समय परमात्मा के मन में ऐसा संकल्प आता है कि मैं एक से दो हो जाऊं। वह जो परमात्मा की दूसरी शक्ति अस्तित्व में आती है वह शंकर भगवान ही होते हैं। काशी में स्वयं परमेश्वर ने ही अपने अंश भूत शिव को निर्देश दिया कि तुझे सदैव काशी में ही रहना है, क्योंकि तुझे प्रलय से काशी की रक्षा करनी है। जब भी महाप्रलय आए अपने त्रिशूल से इसे ऊपर उठा लेना और प्रलय शांत होने पर इसे पुनः पृथ्वी पर स्थापित कर देना। इस प्रकार से ब्रह्मा जी जब नवीन सृष्टि प्रारंभ करते हैं तो शिव काशी को पुनः पृथ्वी पर स्थापित कर देते हैं। इस प्रकार ब्रह्मा जी के निर्देशानुसार शिव अपने गणों सहित काशी में विराजमान हो गए थे इस कारण काशी को शिव की नगरी कहा गया है।
काशी के घाट: काशी में लगभग 50 से 60 तक घाट है। इनमें से 5 घाटों का माहात्म्य
ज्यादा है। यह 5 घाट निम्न प्रकार है-
१ वरणा संगम घाट
२ पंचगंगा घाट
३ मणिकर्णिका घाट
४ दशाश्वमेध घाट
५ अति संगम घाट
काशी के दर्शनीय स्थल: काशी में अनेक दर्शनीय स्थल हैं जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख है
१ श्री विश्वनाथ जी यह काशी का सर्व प्रधान मंदिर है। इसी के कारण काशी का माहात्म्य सर्वाधिक है। इसके मूल मंदिर का इतिहास ज्ञात नहीं है, लेकिन वर्तमान मंदिर अधिक प्राचीन नहीं है। इसका निर्माण रानी अहिल्याबाई ने कराया था और इस पर सिख महाराज रणजीत सिंह ने स्वर्ण कलश चढ़ाया था। आदि शंकराचार्य ने भी इस मंदिर में पूजा अर्चना की थी लेकिन उस कालखंड में इसका स्वरूप मूल मंदिर के रूप में था।
२ अन्नपूर्णा यह मंदिर विश्वनाथ मंदिर से थोड़ी दूर पर है। यहां चांदी के सिंहासन पर अन्नपूर्णा की पीतल की मूर्ति विराजमान है।
३ पवित्र कुंड यहां लगभग 9 पवित्र कुंड हैं और प्रत्यय के स्थान पर मंदिर है।
४ संकट मोचन मंदिर इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति स्थापित है। कहा जाता है कि इसकी स्थापना तुलसीदास जी ने की थी।
५ विशालाक्षी मंदिर गंगा के मणिकर्णिका घाट के पास है मंदिर स्थित है। 52 शक्तिपीठों में से यह 1 शक्तिपीठ है। यहां सती का करण कुंडल गिरा था।
६ ज्ञानवापी श्री विश्वनाथ के पास ही ज्ञानवापी कूप है। कहा जाता है कि जब औरंगजेब ने विश्वनाथ मंदिर तुड़वाया था, श्री विश्वनाथ जी इस कूप में चले गए थे। बाद में उन्हें वहां से निकालकर वर्तमान मंदिर में स्थापित कर दिया गया था। श्रद्धालु इस कूप के जल में आचमन करते हैं।
७ आदि विश्वेश्वर ज्ञानवापी के पास औरंगजेब ने प्राचीन विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवा दी थी। कुश्ती पश्चिमोत्तर सड़क पर पास विश्वेश्वर मंदिर है।
८ काल भैरव यह मंदिर भैरवनाथ मोहल्ले में हैं यहां सिंहासन पर स्थित चतुर्भुज मूर्ति है जो चांदी से मढ़ी हुई है।
९ दुर्गा जी अति संगम घाट से थोड़ी दूरी पर पुष्कर तीर्थ सरोवर है वहां से लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर दुर्गाकुंड नामक विशाल सरोवर है इसके किनारे दुर्गा जी का मंदिर है।
१० गोरखनाथ मंदिर मैदागिन मोहल्ले में यह मंदिर स्थित है।
११ कबीर चौरा इस मोहल्ले में कबीर जी की गद्दी है। गद्दी के पास कबीर जी की टोपी, रामानंद स्वामी कबीर के चित्र हैं।
काशी के आसपास के तीर्थ
बौद्ध तीर्थ, जैन तीर्थ
यात्रा मार्ग यदि भाइयों मात्र से यात्रा करनी है तो वाराणसी हवाई अड्डा है। रेल और बस सेवा हर शहर में उपलब्ध है
ठहरने के स्थान शहर में अनेक धर्मशालाएं, लॉज और होटल हैं।
