लोकमत सत्याग्रह , अंशुल मित्तल, ग्वालियरग्वालियर नगर निगम में एक अधिकारी जोकि इमेज तो एंग्री मैन की रखते हैं लेकिन असलियत यह है कि एंग्री मैन की इमेज इसलिए बना रखी है ताकि कोई सवाल ना पूछ सके। उदाहरण के तौर पर नगर निगम का संपत्तिकर घोटाला, जिसमें संपत्तिकर अधिकारियों द्वारा अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए सरकारी जमीनों की संपत्ति कर आईडी अन्य निजी व्यक्तियों के नाम से बनाकर शासन को करोड़ों का चूना लगाया, उपायुक्त को उस घोटाले की संपूर्ण जानकारी होते हुए भी, मामले को तकरीबन 6 महीने से दबाकर रखा गया और दोषियों को दिया गया संरक्षण। एक वीडियो स्टिंग के अनुसार संपत्ति कर घोटाले की बिंदुवार और संपूर्ण जानकारी उपायुक्त ए पी एस भदौरिया को 6 महीने पहले ही दी जा चुकी थी, और उपायुक्त ने माना था कि यह एक बड़ा घोटाला है जिसमें दोषियों पर तुरंत कार्यवाही होनी चाहिए। लेकिन मामले की लिखित शिकायत होने और निगम आयुक्त द्वारा उपायुक्त ए पी एस भदौरिया को जांच दिए जाने के बावजूद किसी भी दोषी पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। आपको बता दें कि इस घोटाले के कुछ सूत्रधार सेवानिवृत्त होकर गंगा नहा चुके हैं और बाकी के तेजी से रिटायरमेंट की तरफ बढ़ रहे हैं। लेकिन इस संगीन मामले पर निगम के जिम्मेदारों ने कोई सुध नहीं ली, जिसे फर्जीवाड़ा किए जाने की मौन स्वीकृति समझना गलत नहीं होगा!
आपको बता दें कि वीडियो स्टिंग में साफ है कि उपायुक्त ए पी एस भदौरिया से जब विश्रांति गृह निर्माण समिति की एक फाइल के बारे में जिक्र किया गया, तब उनका कहना है कि “वह फाइल तो तत्कालीन और वर्तमान अपर आयुक्त आरके श्रीवास्तव द्वारा मंगा ली गई और वापस नहीं भेजी गई इसीलिए आरटीआई के माध्यम से भी वह फाइल दिया जाना मुनासिब नहीं है!”
हालांकि इन सभी मामलों की जानकारी और पुष्टि के लिए जब उपायुक्त भदोरिया से संपर्क करना चाहा तब उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। बरहाल यह मामला अब एमआईसी और महापौर तक पहुंचा है और जांच की बात की जा रही है। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि संपत्तिकर के जिम्मेदारों द्वारा आज भी इस तरह के घोटालों को अंजाम नहीं दिया जा रहा है!
