प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस की कमेटी करेगी निर्वाचन आयुक्त का चुनाव, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

लोकमतसत्याग्रह/सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य निर्वाचन आयुक्त (सीईसी) और निर्वाचन आयुक्तों (ईसी) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी व्यवस्था बनाने की मांग करने वाली याचिकाओं पर गुरुवार को अपना फैसला सुनाया। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ अपने फैसले में कहा कि प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की कमेटी मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करेगी। हालांकि, नियुक्ति का अधिकार राष्ट्रपति के पास ही रहेगा। 


पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार शामिल हैं। पीठ ने पिछले साल 24 नवंबर को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। मामले में फैसला सुनाते हुए जस्टिस जोसेफ ने कहा कि चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष तरह से कानून के दायरे में रहते हुए संविधान के अंतर्गत काम करना चाहिए।



क्यों उभरा चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर सवाल?
इससे पहले शीर्ष अदालत ने पूर्व नौकरशाह अरुण गोयल को निर्वाचन आयुक्त नियुक्त करने में केंद्र द्वारा दिखाई गई जल्दबाजी पर सवाल उठाते हुए कहा था कि उनकी फाइल 24 घंटे में विभागों से बिजली की गति से पास हो गई। हालांकि, केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत की टिप्पणियों का जोरदार विरोध किया था। अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने तर्क दिया था कि उनकी नियुक्ति से संबंधित पूरे मामले को संपूर्णता से देखने की जरूरत है।


शीर्ष अदालत ने पूछा था कि केंद्रीय कानून मंत्री ने चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री को सिफारिश की गई चार नामों के एक पैनल को कैसे चुना, जबकि उनमें से किसी ने भी कार्यालय में निर्धारित छह साल का कार्यकाल पूरा नहीं किया है। चुनाव आयोग अधिनियम, 1991 के तहत चुनाव आयोग का कार्यकाल छह वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, लागू हो सकता है।


सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति पर दखल दिया था। अदालत ने चुनाव आयुक्त के तौर पर अरुण गोयल की नियुक्ति से संबंधित मूल रिकॉर्ड मांगे थे। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से सवाल किया था कि अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त पद पर कैसे नियुक्ति की गई है। पीठ ने कहा था कि वह सिर्फ तंत्र को समझना चाहती है।

अभी तक कैसे होती थी चुनाव आयुक्त की नियुक्ति
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति की ओर से की जाती है। आमतौर पर देखा गया है कि इस सिफारिश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल ही जाती है। इसी के चलते चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर सवाल खड़े होते रहे हैं। चुनाव आयुक्त का एक तय कार्यकाल होता है, जिसमें 6 साल या फिर उनकी उम्र (जो भी ज्यादा हो) को देखते हुए रिटायरमेंट दिया जाता है। चुनाव आयुक्त के तौर पर कोई सेवानिवृत्ति की अधिकतम उम्र 65 साल निर्धारित की गई है। यानी अगर कोई 62 साल की उम्र में चुनाव आयुक्त बनता है तो उन्हें तीन साल बाद ये पद छोड़ना पड़ेगा। 

कैसे हटते हैं चुनाव आयुक्त?
रिटायरमेंट और कार्यकाल पूरा होने के अलावा चुनाव आयुक्त कार्यकाल से पहले भी इस्तीफा दे सकते हैं और उन्हें हटाया भी जा सकता है। उन्हें हटाने की शक्ति संसद के पास है। चुनाव आयुक्त को सुप्रीम कोर्ट के जजों की ही तरह वेतन और भत्ते दिए जाते हैं।

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