लोकमातसत्याग्रह/सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को तमिलनाडु में मार्च निकालने की अनुमति देने के मद्रास हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की याचिका पर सोमवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस पंकज मित्तल की पीठ के समक्ष राज्य सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि मार्च निकालने का पूरी तरह अधिकार नहीं हो सकता, ठीक जिस तरह ऐसे मार्च निकालने पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं हो सकता। इसके बाद पीठ ने फैसला सुरक्षित रखा।
इससे पहले कोर्ट ने 17 मार्च को मद्रास उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती देने वाली तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई टाल दी थी। तब न्यायालय को बताया गया था कि राज्य सरकार ने पिछले साल 22 सितंबर के मूल आदेश को चुनौती दी है, जिसमें तमिलनाडु पुलिस को आरएसएस के अभ्यावेदन पर विचार करने और बिना किसी शर्त के कार्यक्रम आयोजित करने देने का निर्देश दिया गया था।
खाताधारक को फ्रॉड घोषित करने से पहले बैंकों को उनका पक्ष भी सुनना चाहिए: कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा है कि किसी भी खाताधारक को फ्रॉड घोषित करने से पहले बैंकों को उनका पक्ष भी सुनना चाहिए। कर्ज लेने वाले की भी सुनवाई होनी चाहिए। इसके बाद बैंकों को कोई फैसला लेना चाहिए। कोर्ट ने ये भी कहा कि अगर इस तरह की कोई कार्रवाई होती है तो एक तर्कपूर्ण आदेश का पालन करना चाहिए।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए कहा कि धोखाधड़ी के रूप में खातों का वर्गीकरण उधारकर्ताओं के लिए नागरिक परिणामों में होता है। इसलिए ऐसे व्यक्तियों को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘बैंकों को धोखाधड़ी पर मास्टर निर्देशों के तहत धोखाधड़ी के रूप में अपने खातों को वर्गीकृत करने से पहले उधारकर्ताओं को सुनवाई का अवसर देना चाहिए। इसमें कहा गया है कि कर्ज लेने वाले के खाते को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने के फैसले का तार्किक तरीके से पालन किया जाना चाहिए।’ यह फैसला स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की याचिका पर आया है।