व्यावसायिक सीजन में बेरोजगारी बढ़ने से केंद्र की चिंता बढ़ी, कई क्षेत्रों में पड़ सकता है असर

लोकमत सत्याग्रह/नए वित्त वर्ष की शुरुआत में ही केंद्र सरकार को बढ़ी बेरोजगारी दर की समस्या से जूझना पड़ रहा है। इस समय राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी दर बढ़कर 7.7 प्रतिशत हो गई है। शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर 8.4 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 7.4 प्रतिशत हो गई है। शहरों के व्यावसायिक सीजन और ग्रामीण इलाकों में कृषि कार्यों का सीजन होने के बाद भी बेरोजगारी दर में यह वृद्धि चिंता पैदा करने वाली है। इसका असर आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन वाले क्षेत्रों में भी पड़ सकता है।     

सीएमआईई (CMIE) के आंकड़ों के अनुसार इस वर्ष के जनवरी माह में राष्ट्रीय स्तर पर बेरोजगारी दर 7.14 प्रतिशत थी। फरवरी में यह बढ़कर 7.45 प्रतिशत और मार्च में रिकॉर्ड 7.80 प्रतिशत हो गई। अप्रैल महीने में इस दर में आंशिक कमी आ गई और अब यह 7.70 प्रतिशत पर आ गई है। लेकिन अप्रैल माह में जिस समय व्यावसायिक कामकाज में तेजी रहती है, इस बेरोजगारी दर को भी बहुत ज्यादा माना जा रहा है। 

केंद्र सरकार के लिए ज्यादा चिंता की बात है कि इसी कामकाजी मौसम में शहरी क्षेत्रों में महंगाई दर लगातार आठ प्रतिशत से ज्यादा बनी हुई है। इस अप्रैल माह की शुरुआत में शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 8.4 प्रतिशत पर है। मार्च में शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर 8.51 प्रतिशत, फरवरी में 7.93 प्रतिशत और जनवरी माह में 8.55 प्रतिशत थी। दिसंबर महीने में यह रिकॉर्ड 10.09 प्रतिशत रिकॉर्ड की गई थी। 

अप्रैल माह का समय ग्रामीण इलाकों में खेती के कामकाज का माना जाता है। कृषि कार्यों के कारण इस सीजन में बेरोजगारी दर में कमी आ जाती है। लेकिन इस साल इस कारण के होते हुए भी बेरोजगारी दर 7.4 प्रतिशत पर पहुंच गई है जिसे ग्रामीण क्षेत्रों के लिए ज्यादा माना जाता है। इसके पहले मार्च महीने में ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी दर 7.47 प्रतिशत, फरवरी में 7.23 प्रतिशत और जनवरी में 6.48 प्रतिशत थी। 

विशेषज्ञ ने जताई चिंता
आर्थिक मामलों के जानकार डॉ. नागेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि मार्च के आगे का मौसम व्यावसायिक कार्यों में तेजी का माना जाता है। मार्च-अप्रैल से लेकर आगे गर्मियों में विवाह समारोहों के कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं। इस कारण वाहनों, एफएमसीजी उत्पादों और टेक्सटाइल उद्योग निर्मित उत्पादों की खरीद बढ़ जाती है। इस दौरान निर्माण गतिविधियों में भी तेजी बनी रहती है जिससे निर्माण उद्योग से जुड़े 50 से ज्यादा क्षेत्रों में तेजी दर्ज की जाती है। इनका असर दूसरे क्षेत्रों में भी पड़ता है और अर्थव्यवस्था में गति पैदा हो जाती है। इससे इन सभी क्षेत्रों में रोजगार की मांग बढ़ जाती है। 

इसी प्रकार यह मौसम ग्रामीण इलाकों में फसलों की कटाई और अगली फसलों की तैयारी का हो जाता है। इस दौरान बेहतर कामकाज होने पर श्रमिकों की कमी तक होने लगती है। लेकिन इस मौसम में भी ग्रामीण इलाकों में बेरोजगारी का बढ़ना चिंता पैदा करने वाला है।  

शहरों की बेरोजगारी का व्यापक असर

  • डॉ. नागेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि इस मौसम के दौरान शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर का आठ प्रतिशत से ज्यादा स्तर पर बने रहना शहर के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों के लिए भी चिंता पैदा करने वाली बात है। इसका बड़ा कारण है कि शहरी इलाकों में पहुंचने वाले ज्यादातर श्रमिक ग्रामीण इलाकों के ही होते हैं। उनके भेजे पैसे से ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था मेें गति पैदा होती है। 
  • यदि इन श्रमिकों को शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी का सामना करना पड़ रहा है तो इससे ग्रामीण क्षेत्रों में रहन-सहन पर असर पड़ेगा और इससे ग्रामीण इलाकों में होने वाली आवश्यक वस्तुओं की खपत में कमी आ सकती है जिसका असर उपभोक्ता वस्तुओं के निर्माण में जुड़े उद्योगों को भुगतना पड़ सकता है। 

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