छोटे-मोटे घरेलू विवाद को दहेज प्रताड़ना का रूप देना कानून का दुरुपयोग

लोकमतसत्याग्रह/मप्र हाईकोर्ट खंडपीठ ग्वालियर के न्यायमूर्ति दीपक कुमार अग्रवाल ने एक दहेज प्रताड़ना के मामले में व्यवस्था देते हुए निर्धारित किया है कि परिवार में होने वाले छोटे-मोटे विवादों को दहेज प्रताड़ना का रूप देकर पूरे परिवार को पुलिस केस में फंसा देना न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग है। ऐसे मामलों को खारिज कर देना चाहिए। यह आदेश उन्होंने महाराजपुरा थाने में दर्ज कराई गई दहेज प्रताड़ना की एक एफआइआर के मामले में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए।

शताब्दीपुरम निवासी शैलेंद्र कुमार मिश्रा ने एक याचिका हाइकोर्ट में प्रस्तुत की थी कि दीनदयाल नगर निवासी निशा मिश्रा से वर्ष 2013 में उनका विवाह हुआ था। गत 20 जून 2022 को घरेलू सामान लाने के पीछे पति-पत्नी के बीच विवाद हुआ। पत्नी ने आक्रामक होकर पति पर हमला कर दिया जिससे उसके शरीर पर चोटें आईं। पुलिस द्वारा उसका मेडिकल परीक्षण भी कराया गया। निशा मिश्रा द्वारा पति शैलेंद्र, ससुर सुरेश मिश्रा, सास प्रेमा देवी और जेठ बृजमोहन मिश्रा के विरुद्ध महाराजपुरा थाने में दहेज प्रताड़ना की एफआइआर दर्ज कराई गई। 27 जून 2022 को निशा मिश्रा ने थाने में एक और आवेदन दिया कि भोपाल निवासी ताऊ ससुर मुन्नालाल मिश्रा और देवरानी रजनी मिश्रा ने भी दहेज के लिए मारपीट की। देवर योगेंद्र मिश्रा द्वारा उसके साथ छेड़छाड़ की गई। शैलेंद्र कुमार मिश्रा के अधिवक्ता अवधेश सिंह भदौरिया ने न्यायालय में तर्क दिया कि पुलिस ने मामले की निष्पक्ष जांच कर सच्चाई जानने का प्रयास नहीं किया। भोपाल में रहने वाले ताऊ ससुर, गांव रेपुरा भिंड में रहने वाले जेठ, इंटेलीजेंस ब्यूरो गुवाहाटी में कार्यरत देवर व गर्भवती देवरानी के खिलाफ झूठा मामला दर्ज कर न्यायालय में आरोप पत्र दाखिल कर दिया, जबकि एफआइआर में दहेज की कोई मांग नहीं बताई गई है। इस पर न्यायमूर्ति दीपक कुमार अग्रवाल ने व्यवस्था दी कि छोटे-मोटे झगड़ों को दहेज प्रताड़ना का रूप देना कानून का दुरुपयोग है। उन्होंने इस मामले में जेएमएफसी न्यायालय में चल रहे संपूर्ण मुकदमे को निरस्त कर दिया।

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