लोकमतसत्याग्रह/प्रदेशों के बीच पानी से जुड़े विवाद को रोकने के लिए सेंट्रल वॉटर कमीशन ने नर्मदा नदी की विभिन्न लोकेशन पर 48 वाटर शेडिंग और वेलोसिटी सेंसर की रिपोर्ट देने के लिए रियल टाइम डाटा एक्यूजिशन सिस्टम (आरटीडीएएस) लगाए हैं।
दरअसल, राजस्थान और गुजरात में नर्मदा का पानी जाता है। कई बार पानी रोकने या ज्यादा पानी छोड़ने को लेकर विवाद की स्थिति बनती है। इस सिस्टम से यह स्पष्टता रहेगी कि नदी से कितना पानी छोड़ा गया है और कितना स्टोरेज है। इस एक सिस्टम की लागत 13.50 लाख रु. है। अधिकारियों ने बताया कि ड्राट मैनेजमेंट सिस्टम से पानी की निकासी, सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता आदि की और बेहतर प्लानिंग की जा सकेगी।
कोलार और इंदिरा सागर डेम में लगा सिस्टम
इन टेलीमीटरिंग बेस्ड रिजरवायर ड्रॉट मॉनिटरिंग सिस्टम को कमीशन ने इन सिस्टम्स को बॉर्डर वाले क्षेत्र में इंस्टॉल किया है। ये भोपाल में कोलार डेम और इंदिरा सागर डेम में सिस्टम लगा है। अब अन्य बड़े डेमों पर भी इसे लगाया जाएगा।
ऐसे काम करेगा
- इस सिस्टम में रडार टाइप वॉटर लेवल सेंसर लगा है। यह डेम में पानी के लेवल पर ऑप्टिकल वेब टेक्नोलॉजी के आधार पर काम करता है। पानी तय लेवल से कितना कम हो रहा है, सिस्टम बता देगा। इससे सूखे की स्थिति की आंकलन किया जा सकेगा।
- इसमें एक पोल पर सिस्टम को लगाया जाता है। उसमें डेम के लेवल के साथ ही लो लेवल का डाटा फीड होता है।
- जैसे-जैसे डेम का पानी कम होता है उसकी रियल टाइम जानकारी सैटेलाइट से नई दिल्ली-जयपुर में अर्थ रिसीविंग सिस्टम में जाती है। फिर संबंधित स्टेशनों के सर्वर पर रिकाॅर्ड जाता है। दो महीने पहले सिस्टम ने काम करना शुरू किया है।
वॉटर शेडिंग की सटीक जानकारी मिलेगी
बार्डर वाले एरिया में जहां पानी छोड़ा जाता है वहां के लिए आरटीडीएएस लगाए गए हैं। इसमें वाटर शेडिंग की सटीकी जानकारी रहेगी। पानी को लेकर होने वाले डिस्प्यूट की स्थिति पैदा नहीं होगी।‘
– आदित्य शर्मा, चीफ इंजीनियर, सेंट्रल वॉटर कमीशन
